शुक्रवार, 29 मार्च 2024

लखनऊ :माफिया मुख्तार अंसारी की मौत,डॉन के साथ दफन हुआ आतंक का अध्याय।।||Lucknow:Mafia Mukhtar Ansari dies, a chapter of terror buried with the don.||

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लखनऊ :
माफिया मुख्तार अंसारी की मौत,डॉन के साथ दफन हुआ आतंक का अध्याय।।
दो टूक: बॉद/ लखनऊ: उत्तर प्रदेश के जनपद बांदा जेल में निरुद्ध माफिया सरगना मुख्तार अंसारी की गुरुवार रात दिल का दौरा पड़ने से इलाज के दौरान मेडिकल कालेज में मौत हो गयी। 
रानी दुर्गावती मेडिकल कालेज के सूत्रों ने बताया कि अंसारी को गुरुवार की रात करीब साढे आठ बजे नाजुक हालत में मेडिकल कालेज लाया गया था। उपचार के दौरान उसकी सेहत बिगडती चली गयी और हृदयाघात के कारण उसकी मौत हो गयी। 
विस्तार:
प्रदेश के बाद जेल मे बंद माफिया मुख्तार अंसारी की गुरुवार रात तबियत खराब होने पर जेल प्रशासन ने आनन फानन पर जिलाप्रशासन को सूचना देते हुए रानी दुर्गावती मेडिकल कालेज मे भर्ती कराया जहाँ डाक्टरो की टीम ने इलाज शुरु करना शुरु किया लेकिन मुख्तार को बचापाने मे असमर्थ रहे और 63 वर्षीय मुख्तार अंसारी की मौत हो गई। मौत के बाद एहतियात के तौर पर बांदा,गाजीपुर और मऊ में सुरक्षा व्यवस्था बढा दी गयी है। मुख्तार पिछले करीब ढाई साल से बांदा जेल में निरुद्ध था। उसके खिलाफ 64 से अधिक मुकदमे दर्ज है जिसमें से कुछ समय पहले एक में उसे उम्रकैद की सजा सुनायी गयी थी। 
मेडिकल कालेज अस्पताल ने एक मेडिकल बुलेटिन जारी कर मुख्तार की मौत की पुष्टि की है। जिसके अनुसार 63 वर्षीय मुख्तार को रात आठ बजकर 25 मिनट पर उल्टी की शिकायत पर बेहोशी की हालत में लाया गया था।डाक्टरों की टीम ने उसका इलाज शुरु किया मगर भरसक प्रयास के बावजूद हृदयाघात के कारण मरीज की मौत हो गयी। 
सूचना पर तत्काल जिलाधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल पुलिस अधीक्षक अंकुरअग्रवाल सहित पूरा प्रशासन दलबल के साथ पहुंचा जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक सहित समस्त प्रशासनिक अधिकारी मौजूद है। सुरक्षा की दृष्टि से बांद जनपद समते अन्य जनपदों मे सुरक्षा ब्यवस्था बढ़ा दी गई।
अपराध का राजनीति जगत बना सुरक्षा कवच।।
माफिया मुख्तार अंसारी की हार्टअटैक से मौत के साथ के साथ एक आतंक के 'अध्याय' का भी अंत  हो गया साथ ही कई राज भी दफन हो गए।
माफिया मुख्तार ने राजनीति को अपना सुरक्षा कवच बना लिया था वह दो बार निर्दलीय उम्मीदवार रहकर भी विधानसभा चुनाव जीत चुका था। सपा-बसपा से दूरी होने पर अपनी पार्टी कौमी एकता दल बनाया। मुख्तार अंतिम बार बसपा के टिकट पर 2017 में विधानसभा पहुंचा था।
जेल की सलाखों में रहकर भी मुख्तार अंसारी ने कई राजनीतिक दलों का इस्तेमाल अपने ढंग से किया। बाहुबल के दम पर कमजोर उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित कराई तो खुद भी माननीय बना। मुख्तार ने अपने व कुनबे के लिए राजनीतिक जमीन तैयार करने के लिए हर दांव चला।अपने बाहुबल के बूते बड़े भाई अफजाल अंसारी को संसद तक पहुंचाया तो बड़े बेटे अब्बास अंसारी को भी विधायक बनाया।
कानूनी दांवपेंच का मास्टरमाइंड--
मुख्तार अपराध जगत से लेकर कानूनी दांवपेंच का मास्टरमाइंड भी था चार दशकों तक पुलिस के लिए ऐसी चुनौती बना रहा कि कोई गवाह-कोई साक्ष्य उसे सजा नहीं कर सका। प्रदेश में सूचीबद्ध माफिया पर जब अभियान के तहत पैरवी शुरू हुई तब जाकर वह कमजोर पड़ा और चालीस वर्षाें के बाद उसे पहली बार 21 सितंबर, 2022 को सजा सुनाई गई थी। इसके बाद डेढ़ वर्ष में एक के बाद एक आठ मुकदमों में उसे सजा सुनाई गई।
मुख्तार के विरुद्ध हत्या का पहला मुकदमा 1986 में दर्ज हुआ था, तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। मुख्तार पर तत्कालीन कांग्रेस नेताओं का भी हाथ रहा। प्रदेश में सरकारें तो बदलती रहीं, पर चलती मुख्तार अंसारी की ही थी। मुख्तार दर्ज मुकदमों में कानूनी दांवपेंच के सहारे कोर्ट में आरोप तय कराने की प्रक्रिया को लटकवाने में माहिर रहा। आज मुख्तार के कुनबे पर भी कई मुकदमे दर्ज है।