दो टूक, गोण्डा- अपनी प्राचीन परम्परा को निभाते हुए हजारो गैरजनपदीय देवीभक्त पैदल देवीपाटन मंदिर के लिए अपने घरो से आगामी चैत्र नवरात्र मे निकलने की जोरदार तैयारी मे लगे है। जनपद गोण्डा की सीमा मे यह लोग 12 अप्रैल को प्रवेश करेंगे और जगह जगह रात्रि विश्राम करते हुए पैदल देवीपाटन मंदिर जाकर देवीमां के दर्शन पूजन करेंगे। हर साल चैत्र नवरात्र में इनकी यह अत्यंत कठिन यात्रा करीब एक सप्ताह की होती है। “भुजवा का मेला” कहे जाने वाले उक्त मेलार्थी अनेक जिलों से आते है। अयोध्या जनपद के थानाक्षेत्र खंडासा के ग्रामसभा बकचुना निवासी करीब 50 वर्षीय मेला प्रमुख शत्रुहन गुप्ता ने दूरभाष पर बताया की चैत्र नवरात्र मे विशाल "भुजवा बाबा मेला" की यह कठिन यात्रा अयोध्या जनपद के ग्रामसभा बकचुना से देवीपाटन मंदिर को रवाना होती है। उन्होंने बताया की आगामी 11 अप्रैल को यात्रा शुरू होगी और इसी दिन शाम को रुदौली खैरनपुर मे पहुंचकर रात्रि विश्राम व भोजन होगा। यहाँ से 12 अप्रैल को प्रातः करीब 5 बजे यात्रा पुनः शुरू होगी और इसी दिन जनपद गोण्डा की शीमा मे प्रवेश होगा और शाम को उमरी बेगमगंज मे आगमन होगा एवं पूरी रात्रि यहाँ विश्राम होगा। इसके बाद 13 अप्रैल को प्रातः उमरी से मेलार्थी रवाना होंगे और इसी दिन शाम को बुधईपुरवा मे मनोज ईंट भट्ठा के पास पहुंचकर रात्रि विश्राम होगा, 14 अप्रैल की यात्रा यही से प्रातः आरम्भ होगी और इसी दिन शाम को इटियाथोक थानाक्षेत्र के अयाह गाँव के पास स्थित प्राचीन सगरे पर रात्रि विश्राम व भोजन होगा। यहाँ से अगली यात्रा 15 अप्रैल के प्रातः करीब 5 बजे शुरू होगी और इसी दिन बलरामपुर जनपद के सिसई स्कूल मे शाम को पहुंचकर वहाँ रात्रि विश्राम होगा। यहाँ से 16 अप्रैल को प्रातः यात्रा आरम्भ होगी और छठवां विश्राम इसी दिन देवीपाटन (तुलसीपुर) होगा। उसके बाद देवीपाटन मंदिर मे दर्शन पूजन होगा।
मेला प्रमुख ने बताया की इस बार इनकी संख्या 5 से 6 हजार के बीच होने की उम्मीद है, जिसमे अनेक जाति व धर्म के महिला, पुरुष व बच्चे शामिल रहेंगे। उन्होंने बताया की इसमें अयोध्या, बाराबंकी, सुल्तानपुर, अमेठी आदि जगहों के मेलार्थी शामिल रहते है। यात्रा के दौरान यह लोग लम्बी कतार मे गाजे बाजे के साथ चलते है और अपनी प्राचीन परम्परा के अनुसार पूर्व निर्धारित ग्रामीण रास्तो पर आवागमन करते हुए परम्परा के तहत पूर्व निर्धारित स्थान पर ही रात्रि विश्राम करते है। उन्होंने बताया की हाइवे और मुख्य मार्ग का इस्तेमाल बहुत कम होता है, उमरी से गोण्डा तक की यात्रा मुख्य मार्ग से होती है।
"जगह जगह भक्तो की होती है सेवा"---
यात्रा के दौरान यह मेलार्थी अनेक स्थानो पर रुकते है और जगह जगह इन भक्तो की सेवा स्थानीय लोग करते है। कही मुफ्त भोजन तो कही सर्वत आदि की सुबिधा जनसहयोग से दी जाती है। गोण्डा जिले के इटियाथोक क्षेत्र अंतर्गत अयाह गांव के प्राचीन सगरे पर यह लोग हर साल आकर रात्रि विश्राम करते है। इनके लिए अयाह में जलपान, भोजन, दवा, जनरेटर से लाइट और मोबाइल चार्जिंग व्यवस्था ग्राम प्रधान, समाजसेवियों और ग्रामीणों के प्रयाश से हर साल करवाई जाती है। यहाँ सीएचसी की टीम मुफ्त दवा वितरण करती है और थाने की पुलिस टीम रात मे रहकर निगरानी करती है। इसके साथ ही भक्तो की सुबिधा को लेकर जिले के वरिष्ठ पत्रकार जानकी शरण द्विवेदी के द्वारा लिखा पढ़ी करते हुए गोण्डा और खरगुपुर नगर पंचायत से पेयजल के एक-एक टैंकर यहाँ हर साल उपलब्ध कराये जाते है। साथ ही गाँव के लोग पेयजल हेतु पम्पसेट भी यहाँ लगाते है। वही मेलार्थी के आगमन के पूर्व ब्लाक के जिम्मेदार अधिकारी टीम भेजकर सगरे के आस पास साफ सफाई कराते है। अयाह के प्रधान प्रतिनिधि इबरार खान ने बताया की सहयोग के लिए ब्लाक मुख्यालय, सीएचसी व थाने पर जल्द ही पत्र दिया जाएगा।
"मेला प्रमुख ने बताई यह बात"--
मेला प्रमुख शत्रुहन गुप्ता ने दूरभाष पर बताया की बीते कुछ वर्षों से मेले की अगुवाई इनके द्वारा की जाती है। जबकि इसके पूर्व इनके पिता शिवशंकर गुप्ता मेले की अगुवाई करते थे। बताया कि पिता से पहले इनके बाबा मेले की अगुवाई किया करते थे। मेला प्रमुख ने कहा कि इस मेले में लगभग हर जाति और धर्म के अनेक लोग शामिल होते हैं जो एक साथ पैदल चलकर डफला आदि बाध्ययंत्र बजाते और गीत गाते हुए देवीपाटन मंदिर के प्रसिद्ध देवीमां के दर्शन एक साथ नवरात्र के अंत में करते हैं। इस दौरान वहा इनके द्वारा विशेष हवन भी की जाती है। उन्होंने बताया कि इस मेले में तमाम पढ़े- लिखे और व्यवसाय, नौकरी आदि से जुड़े लोग भी शामिल होते हैं। मेले में बृद्ध, महिला, पुरुष, बच्चे, छात्र और छात्राएं भी रहते हैं। मेला प्रमुख ने कहा कि इनकी यह संपूर्ण यात्रा करीब एक सप्ताह मे पूर्ण होती है। मेला प्रमुख ने बताया की रात्रि विश्राम के दौरान अनेक लोग जमीन में गड्ढेनुमा चूल्हा खोदकर अपना भोजन स्वयं बनाते हैं, किन्तु यदि स्थानीय लोग खाद्य सामग्री का वितरण करते हैं तो उसे भी वह स्वीकार करते हैं। बताया की इनकी यह परंपरा कई दशक पुरानी है जिसे यह लोग आज भी निभा रहे हैं। बताया की कुछ दशक पूर्व यह लोग वापस भी इन्हीं मार्गो से पैदल होते थे किंतु अब व्यस्तता के चलते वापसी के समय बस अथवा ट्रेन आदि साधनों का उपयोग करते हैं। उन्होंने बताया कि नवरात्रि के अंतिम दो दिन यह लोग देवीपाटन मंदिर पर ही बिताते हैं और मेला का आनंद लेते हैं। बताया की इनके लिए देवीपाटन मंदिर परिसर में देवी दर्शन की विशेष व्यवस्था करवाई जाती है।। गोण्डा से प्रदीप पांडेय की ख़ास रिपोर्ट।।