गुरुवार, 11 अप्रैल 2024

मऊ :अधिकांश निजी स्कूलों ने शिक्षा के मंदिर को बनाया व्यवसाय का अड्ड,मनमानी से लोग परेशान।||Mau:Most of the private schools have turned the temple of education into a business centre, people are troubled by their arbitrariness.||

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मऊ :
अधिकांश निजी स्कूलों ने शिक्षा के मंदिर को  बनाया व्यवसाय का अड्ड,मनमानी से लोग परेशान।।
दो टूक: प्रवेश शुल्क में मनमानी की जा रही है, तो अभिभावकों को स्कूल से ही पुस्तक, बैग व ड्रेस लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है। अब अभिभावकों की मजबूरी है कि वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए विद्यालय प्रबंधन की प्रत्येक मांग को पूरी करने के लिए विवश है
कोपागज कई अभिभावकों ने विद्यालय प्रबंधन द्वारा की जा रही मनमानी की शिकायत संबंधित अधिकारियों से की, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका है। नतीजा यह है कि विद्यालयों में मनमानी लगातार जारी है।
वैसे तो शासन के निर्देश पर इस बार नया शिक्षासत्र एक अप्रैल से ही शुरू कर दिया गया, लेकिन जिले के अधिकतर निजी स्कूलों में जुलाई में भी विद्यार्थियों के प्रवेश को लेकर होड़ मची हुई है। रोज विभिन्न स्कूलों के शिक्षक छोटे छोटे ग्रुप में नगर की गलियों की खाक छानते फिर रहे हैं।वे इस दौरान अभिभावकों को अपने-अपने स्कूल की विशेषता बढ़ चढ़कर बताते रहते हैं। यह अलग बात है कि उनके लोकलुभावन बातों में फंसकर तमाम अभिभावक अपने बच्चों का नाम ऐसे स्कूलों में लिखवा देते हैं, लेकिन अधिकतर उन्हें पछताना ही पड़ता है। 
अधिकांश निजी स्कूलों ने शिक्षा के मंदिर को व्यवसाय का अड्डा बना दिया है।अभिभावकों को विद्यालय से ही किताबें, ड्रेस, बैग व अन्य स्टेशनरी खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है। इसके लिए अभिभावकों को अधिक दाम देना पड़ता है, लेकिन उनकी ऐसा करने की मजबूरी होती है। 
जिन किताबों को स्कूल में बड़े कमीशन पर लगाया जाता है, वह बाजार में कहीं मिलती ही नहीं हैं। शिक्षा के व्यवसायीकरण का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है 
 प्रधानाचार्य कक्ष से ही पुस्तकों की धड़ल्ले से बिक्री की जाती है।   कोपागज  के पवन गुप्ता  व अंशुल वर्मा कहते हैं कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई होती नहीं। ऐसे में अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए ऐसे विद्यालयों में अपने बच्चों का प्रवेश कराना पड़ता है। हालांकि उन्हें मालूम है कि इन विद्यालयों में शोषण अधिक, पढ़ाई कम है, लेकिन क्या करें मजबूरी है।
 कोपागज  पवन गुप्ता  का  कहा कि संबंधित अधिकारियों को ऐसे निजी स्कूलों पर लगाम कसनी चाहिए। कहा कि साधन संपन्न लोगों को तो कोई समस्या नहीं होती, लेकिन मध्यम वर्ग के लोगों के समक्ष व्यापक मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं।
टडियाव गाव रहने वाले बबब्लू  पाण्डेय   ने कहा कि प्रवेश से लेकर रिपोर्ट कार्ड देने तक अलग अलग प्रकार से धन उगाही की विद्यालय प्रबंधन द्वारा की जाती है। यदि इंकार करो, तो बच्चे को तरह तरह से परेशान किया जाता है। ऐसे में उनकी मजबूरी होती है कि जो भी विद्यालय द्वारा मांगा जा रहा है, उसे प्रदान करें