गोण्डा :
महिला अरक्षण के बावजूद रबर स्टाम्प बनकर महिलाएं,कार्यो मे पति का हस्तक्षेप।
आनंद पाण्डेय।
दो टूक : गोंडा जनपद के रुपईडीह क्षेत्र में राजनीति में महिलाओ को आरक्षण के बाद भी रबर स्टाम्प बनकर रह गयी। ग्राम पंचायतों में महिला ग्राम प्रधान होने पर, उनके परिजन गांव की सरकार चला रहे हैं। ग्राम पंचायतों के विकास के विषय में होने वाली तमाम योजनाओं की आवश्यक बैठकों में भी अधिकतर भाग नहीं लेती बल्कि, उनके परिवारीजन ही वहां दिखाई देते हैं। ऐसे में गांवों का विकास कैसे होगा । मामला विकासखंड रूपईडीह से जुड़ा हुआ है जहां पर 106ग्राम पंचायतों में 48 ग्राम पंचायतों के विकास का जिम्मा महिला प्रधानों के हाथों में जनता ने सौंपी थी।चुनावों के दौरान महिलाओं के लिए ग्राम पंचायतें अलग-अलग आरक्षित की गई थी ,जो कि ब्लाक के कुल ग्राम पंचायतों का लगभग 45 फीसदी पर महिला ग्राम प्रधानों का कब्जा है। इसके अलावा भी कुछ ऐसी ग्राम पंचायतें ,जहां महिलाओं पर परिवारों ने दांव खेला और वे भी गांव की सरकार चलाने के योग्य साबित हुईं।लेकिन गांव में कौन से विकास कार्य अब तक किए गए हैं और क्या कार्य चल रहें हैं, गांव के विकास के लिए कौन सी योजनाएं संचालित हैं. इसकी जानकारी इनमें से शायद ही दो फीसदी महिला ग्राम प्रधानों को होगी । बल्कि ये कहना है कि जिले की जिला अधिकारी का जिम्मा संभालने वाला भी कोई और नहीं बल्कि वह भी एक महिला अधिकारी ही हैं। समस्या तो तब और ज्यादा होती है जब महिला प्रधानों को यह भी पता नहीं होता कि उनके गांव में क्या कार्य चल रहा है।उनके एकाउंट से कितना पैसा निकल गया है।इसका मुख्य कारण चुनी गई महिला प्रधानों की सीमाए घर के चहारदीवारी के अंदर चौखट तक सीमित रह जाना । ग्राम विकास के विषय में होने वाली तमाम योजनाओं की आवश्यक बैठकों में भी अधिकतर प्रधानपतियों, प्रधान ससुर, प्रधान पुत्र तथा परिवारीजन ही वहां दिखाई देते हैं।इस सम्बन्ध में खंड विकास अधिकारी से संपर्क किया गया लेकिन पक्ष से जानकारी नहीं प्राप्त हो सकी।