बुधवार, 31 जुलाई 2024

अम्बेडकर नगर :कूओं का अस्तित्व खतरे में,जगत विहीन कूंए बने मौत का कुआ।||Ambedkar Nagar:The existence of wells is in danger, wells without a world have become wells of death.||

शेयर करें:
अम्बेडकर नगर :
कूओं का अस्तित्व खतरे में,जगत विहीन कूंए बने मौत का कुआं।
।। पूनम तिवारी ।।
दो टूक : वर्तमान जलस्रोत का मुख्य आधार कुआ की दैनीय स्थित नई पीढियों के लिए इतिहास बनता जा रहा है। परम्पराओं की रस्मी,शान का पर्याय कुऐं की समाज कब सुधि लेगा।
आज से करीब दो दशक पूर्व एक समय था जहां किसी के घर के सामने कुआं हुआ करता था तो लोग उस व्यक्ति का काफी सम्मान करते थे और उसे नंबरदार भैया की उपाधि देने से नहीं चूकते थे। लोगों का जलस्रोत का आधार था। लेकिन वर्तमान समय में कूओं का अस्तित्व ही धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। यहां तक कि शादी ब्याह के मौके पर भी लोगों को कुआं ढूंढने पर भी जल्दी नहीं मिलता। कुआं न मिलने से लोगों को हैंडपंप अथवा छोटा गड्ढा खोदकर उसमें रस्म अदायगी करनी पड़ती है। 
हालांकि,अधिकांश कूंए तो पाट दिए गए हैं। लेकिन जो बचे भी हैं वे देखरेख के अभाव में खंडहर में तब्दील हो गए। किसी की जगत टूटी हुई है, तो किसी की अंदर लगी ईंटें भी सही सलामत नहीं है। देखरेख के अभाव में जीर्ण हो चुके कूंए झाड़ियों से घिरे हैं, जिसमें पक्षियों ने अपना रैन बसेरा बना रखा है। झाड़ियां से घिरा होने के कारण सामने दिखाई ही नहीं पड़ता कि वहां कोई कुआं भी है। जलालपुर तहसील क्षेत्र के हजपुरा निवासी शिवमूरत विश्वकर्मा, राम मूरत विश्वकर्मा, कैलाश नाथ मिश्र, दयाराम मिश्र, जियालाल कनौजिया, गंगाराम गुप्ता आदि बताते हैं कि अब से करीब दो दशक पूर्व गांव के लोग खेतों की सिंचाई करने के लिए कुएं में रहट का प्रयोग करते थे, और उसी से अपने क्यारियों आदि की सिंचाई भी करते थे। भयंकर गर्मी में भी लोग कुएं का ठंडा व मीठा पानी पीते थे और निरोगित रहते थे, लेकिन अब कुआं किसी खास काम से काफी ढूंढने के बाद ही मिलता है। शिव मूरत विश्वकर्मा बताते हैं कि उनके घर के सामने स्थित कूंए की जगत चारों तरफ से टूट गई हैं, और रास्ता अत्यंत व्यस्त होने के कारण व उसी के बगल झाड़ियों से घिरा हुआ जगत विहीन कुआं स्थित होने से हमेशा खतरा बना रहता है, जो कि कभी भी किसी के लिए किसी भी समय "मौत का कुआं" साबित हो सकता है। इस संबंध में उन्होंने तथा ग्रामीणों ने उक्त कुएं के जीर्णोधार के लिए जिम्मेदार लोगों से कई बार कहा, लेकिन आज तक इस जगत विहीन कूंए की तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। कहा कि ऐसा लगता है कि रास्ते के किनारे जगत विहीन कुएं से कोई बड़ा हादसा हो जाने पर ही अधिकारी इसे संज्ञान में लेंगे। कूंए की जगत क्षतिग्रस्त हो जाने से वह गांव के अंदर से जाने वाले संपर्क मार्ग में मिल चुकी है। ऐसे में कभी भी किसी बड़े हादसे से इनकार नहीं किया जा सकता। लोगों ने यह भी बताया कि इसी कुएं के जीर्णोद्धार के लिए पूर्व प्रधान रामसरन राजभर ने बिना कोई काम कराए ही 86 हजार रुपए अवमुक्त करा लिया है।विनायक मिश्र व मारुत्वान आदि ने बताया कि कूएं के बगल बच्चे खेलते हैं जिससे बच्चों के गिरने का खतरा तो बना ही रहता है, साथ ही राहगीरों व ग्रामीणों के भी गिरने का खतरा बना हुआ है। लोगों ने बताया कि उक्त कुएं के जीर्णोद्धार के लिए उन्होंने कई बार ग्राम प्रधान, क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि व संबंधित अधिकारियों को अवगत कराया, परंतु कहीं से कोई सुनवाई नहीं हुई। लोगों ने बताया कि इसी तरह अन्य जगहों पर भी कुछ जगत विभिन्न कूंए पड़े हुए हैं, जिनमें पानी कम सांप और बिच्छू ज्यादा निवास करते हैं। उधर , सामाजिक कार्यकर्ता पंकज श्रीवास्तव ने जिला प्रशासन से कूओं का अस्तित्व बचाने के लिए अतिशीघ्र जर्जर हो चुके कूओं के जीर्णोद्धार कराए जाने की मांग की है। जिससे राहगीरों, ग्रामीणों व बच्चों को  जगत विहीन कूओं के भय से निजात मिल सके।