शुक्रवार, 5 जुलाई 2024

कविता :!!काग़ज़-सी तक़दीर है अपनी!!||Poem:!!My destiny is like a piece of paper!!||

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कविता :
!!काग़ज़-सी तक़दीर है अपनी!!
कागज-सी तक़दीर है अपनी, 
जो चाहे जो कुछ लिख दे,
कोई अपना सुख लिख दे, 
कोई अपना दुख लिख दे,
कोई फाड़कर फेंके मुझको,
और कोई प्यार से देखे मुझको,
कोई बारहा चूमें मुझको,
और कोई लेकर घूमें मुझको,
फिर भी अधूरी तस्वीर है अपनी,
काग़ज़-सी तक़दीर है अपनी,

कोई प्रेम पत्र लिख डाले मुझ पर,
और कोई दर्द निकाले मुझ पर,
कोई बना के जहाज उड़ाये मुझको,
और कोई पानी पर तैराये मुझको,
कोई खेले हर पल मुझ संग,
और कोई मुझ संग प्रीत लगाये,
फिर भी भारी पीर है अपनी,
काग़ज़-सी तक़दीर है अपनी,

जाड़ों की ठंडी रातों में,
मैं भी अब फूँका जाता हूँ,
और किलो के भावों से,
रद्दी में बेचा जाता हूँ,
कभी किताबों के रूपों में,
मुझे सहेजा जाता था,
और दिल का हाल लिख-लिख कर,
मुझको ही भेजा जाता था,
पहले तो तन्हाई में,
डायरी से बातें होती थीं,
दिन भर की थकन में,
प्रेम-पत्र संग सुंदर-सी रातें होती थीं,
लेकिन अब यह सारे काम,
होते हैं मोबाइलों पर,
कारण है मोबाइल ही,
कि अब धुंधली तनवीर है अपनी,
काग़ज़-सी तक़दीर है अपनी..!!
रचनाकार

 कोमल कनौजिया
 स्नातक(बी. काॅम)
पता- ग्राम रकीबाबाद, पोस्ट मोहारी खुर्द, जनपद लखनऊ, उत्तर प्रदेश