लेख::
धनतेरस:मा कश्चिद दुख भाग्भवेत: डॉ० उदयराज मिश्र ।।
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सर्वे भवन्तु सुखिनः का मूल मा कश्चिद दुख भाग्भवेत में निहित है।दुखविहीन स्थिति ही सुख है।अब प्रश्न उठता है कि त्रिविधम दुखम उच्यते अर्थात दुख तीन प्रकार के कहे जाते हैं-दैविक,दैहिक और भौतिक।जिनमे दैहिक दुख हरप्रकार की अशांति का कारक और अनिष्टकारी होता है क्योंकि कहा गया है-शरीर माद्यम खलु धर्म साधनम।अर्थात सभी प्रकार के धर्मों की साधना का माध्यम शरीर ही होता है।इसप्रकार कहा जा सकता है कि स्वस्थ शरीर सभी प्रकार की दैवीय व भौतिक समस्याओं का निदान खोजने का सर्वोत्तम माध्यम है।किंतु यही निरोग न रहे तो कैसा रहेगा?इसी की महत्ता का प्रतिपादन हिंदुओं का धनतेरस महोत्सव करता है।
कुछ लोग धनतेरस को धन की तेरस समझ बैठते हैं,जोकि अनुचित है।पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के समय कार्तिक माह की कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को समुद्र से देव चिकित्सक धन्वंतरि जी अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे।इसीलिए इस तिथि को भारत सरकार राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में औपचारिक रूप से मनाती है।इस तरह धनतेरस का पर्व स्वास्थ्य और आरोग्यता को समर्पित लोककल्याण का पर्व है।
इसदिन अमृत कलश के प्रतीक के रूप में बर्तन तथा चांदी के आभूषण भी खरीदते हैं।चांदी व्यक्ति को संतोष,तुष्टि और आरोग्य प्रदान करने वाली मूल्यवान धातु है,जोकि औषधियों के स्वामी चंद्रदेव की प्रतीक मानी जाती है।चांदी की अंगूठी,जंजीर व गहने पहनने से हानिकारक कीटाणुओं का शरीर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
धनतेरस मनुष्यों को आरोग्य, यश,अमरत्व व कीर्ति प्रदान करने का महोत्सव है।कार्तिक बदी त्रयोदशी को मनाया जाने वाला यह पर्व यमराज से अभय प्रदान करता है।इस दिन सायं घर से दूर दीपक जलाकर यमराज का स्मरण करना चाहिए।
दीपोत्सव का यह प्रथम पर्व धनतेरस अपने विभिन्न नामों सहित धन्य तेरस को साकार करे।यही इसकी महत्ता है।
-डॉ. उदयराज मिश्र