गोंडा- उप्र के सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा सोमवार को विधानसभा में अवधी भाषा के संरक्षण और प्रचार- प्रसार के उद्देश्य से विशेष संस्थान खोलने की घोषणा का अवध संस्कृति से जुड़े विद्वानों, साहित्यकारों, कवियों और आम जनता ने खुले दिल से स्वागत किया। अवध संस्कृति उत्कर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेश कुमार सिंह ने कहा कि योगी आदित्यनाथ का यह कदम अवधी भाषा के उत्थान की दिशा में एक ऐतिहासिक फैसला है। इससे अवधी भाषा के प्रति लोगों की रुचि बढ़ेगी और इसे वैश्विक स्तर पर भी पहचान मिलेगी। अवधी भाषा एवं साहित्य का इतिहास के लेखक डॉ श्रीनारायण तिवारी ने कहा, ‘अवधी भाषा में जो मिठास और गहराई है, उसे सहेजने की जरूरत है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का फैसला से अवधी साहित्य, लोकगीत और नाट्यकला को नई ऊंचाइयों तक पहुंचायेगा। जिले के वरिष्ठ पत्रकार और अवध संस्कृति उत्थान समिति के महामंत्री जानकी शरण द्विवेदी ने कहा कि अवधी संस्थान के गठन से लगभग 12 करोड़ लोगों की सांस्कृतिक पहचान को और मजबूती मिलेगी। साथ ही नई पीढ़ी को अपनी मातृभाषा से जोड़ने का कार्य करेगा।
बताते चलें कि अवधी भाषा के विकास में अवध संस्कृति उत्कर्ष समिति (भारत) के विद्वानों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यह समिति अवधी भाषा के प्रसार-प्रचार के लिए राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित करती है, जहां साहित्यिक हस्तियों को सम्मानित किया जाता है। गोस्वामी तुलसीदास की जयंती पर 2023 में, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. अनिल राय, साहित्यकार सूर्यपाल सिंह, डॉ श्रीनारायण तिवारी, उद्योगपति ठाकुर सूर्यकांत सिंह, रमेश दुबे, डॉ लक्ष्मीकांत पांडेय, सूरजभान सिंह को ‘‘अवध संस्कृति सम्मान’’ से नवाजा गया। इन प्रयासों से अवधी भाषा और साहित्य को नई ऊंचाइयां मिली हैं। अवधी भाषा भारत की प्राचीन और समृद्ध भाषाओं में से एक है, जो मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के 32 जिलों सहित पड़ोसी देश नेपाल में भी बोली जाती है। यह भाषा न केवल ऐतिहासिक और साहित्यिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि लोक संस्कृति, परंपराओं और धार्मिक ग्रंथों में भी इसका विशेष स्थान है।